चंद अश्'आर जो सीने में दबा रक्खे हैं
कुछ समझ-सोच के यारों से छुपा रक्खे हैं
एक उम्मीदे-शिफ़ा ये है कि वो आ जाएं
इसलिए मर्ज़ तबीबों से बचा रक्खे हैं
हो अगर दिल में शरारत तो बता दें हमको
वर्न: हमने भी कई दांव लगा रक्खे हैं
वर्क़ दर वर्क़ बयाज़ों का मुताला कर लें
किस क़दर आपने एहसान भुला रक्खे हैं
सब्र रखने की वजह हो तो ख़ुशी से रख लें
आपने यूं भी बहुत तीर चला रक्खे हैं
घर हमारा जो जला है तो समझ लें वो भी
चश्मदीदों ने कई राज़ बता रक्खे हैं
अर्श जिस रोज़ पुकारेगा निकल जाएंगे
क़र्ज़ कब हमने ज़माने के उठा रक्खे हैं ?
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चंद: कुछ; अश्'आर: शे'र (बहु.); उम्मीदे-शिफ़ा: रोग-मुक्ति/आरोग्य की आशा; तबीबों: उपचारकों, वैद्यों/हकीमों; वर्न:: अन्यथा; वर्क़ दर वर्क़: पृष्ठ प्रति पृष्ठ; बयाज़ों: दैनन्दिनियों; मुताला: पठन; एहसान: अनुग्रह; सब्र: धैर्य; चश्मदीदों: प्रत्यक्षदर्शी; राज़: रहस्य; अर्श: आकाश, ईश्वर; क़र्ज़: ऋण।
कुछ समझ-सोच के यारों से छुपा रक्खे हैं
एक उम्मीदे-शिफ़ा ये है कि वो आ जाएं
इसलिए मर्ज़ तबीबों से बचा रक्खे हैं
हो अगर दिल में शरारत तो बता दें हमको
वर्न: हमने भी कई दांव लगा रक्खे हैं
वर्क़ दर वर्क़ बयाज़ों का मुताला कर लें
किस क़दर आपने एहसान भुला रक्खे हैं
सब्र रखने की वजह हो तो ख़ुशी से रख लें
आपने यूं भी बहुत तीर चला रक्खे हैं
घर हमारा जो जला है तो समझ लें वो भी
चश्मदीदों ने कई राज़ बता रक्खे हैं
अर्श जिस रोज़ पुकारेगा निकल जाएंगे
क़र्ज़ कब हमने ज़माने के उठा रक्खे हैं ?
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चंद: कुछ; अश्'आर: शे'र (बहु.); उम्मीदे-शिफ़ा: रोग-मुक्ति/आरोग्य की आशा; तबीबों: उपचारकों, वैद्यों/हकीमों; वर्न:: अन्यथा; वर्क़ दर वर्क़: पृष्ठ प्रति पृष्ठ; बयाज़ों: दैनन्दिनियों; मुताला: पठन; एहसान: अनुग्रह; सब्र: धैर्य; चश्मदीदों: प्रत्यक्षदर्शी; राज़: रहस्य; अर्श: आकाश, ईश्वर; क़र्ज़: ऋण।
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