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मंगलवार, 13 सितंबर 2016

अखर जाएगी ज़िंदगी ...

रेज़ा  रेज़ा  बिखर  जाएगी  ज़िंदगी
ग़म  न  हों  तो  ठहर  जाएगी  ज़िंदगी

चार  दिन  बेबसी  के  अगर  निभ  गए
पांचवें  दिन  संवर   जाएगी  ज़िंदगी

हिज्र  में  दोस्तों  की  दुआ  लीजिए
हर  भंवर  से  उबर  जाएगी  ज़िंदगी

भूख  से  तिफ़्ल  घर  में  तड़पते  मिलें
तो  सभी  को  अखर  जाएगी  ज़िंदगी

ख़ून  के  रंग  में  गर  बग़ावत  न  हो
दहशतों  में  गुज़र  जाएगी  ज़िंदगी

नाम  लेंगे  ख़ुदा  का  उसी  रोज़  हम
जब  ज़ेहन  से  उतर  जाएगी  ज़िंदगी

अब  जो  तूफ़ान  से  इश्क़  कर  ही  लिया
देख  लेंगे  जिधर  जाएगी  ज़िंदगी  !

                                                                            (2016)

                                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : रेज़ा रेज़ा : टुकड़े टुकड़े; बेबसी : विवशता; हिज्र : वियोग; दुआ : शुभाकांक्षा; तिफ़्ल : शिशु, छोटे बच्चे; गर : यदि; बग़ावत : विद्रोह; दहशतों : आतंक, भयों; ज़ेहन : मस्तिष्क ।



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