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सोमवार, 6 जून 2016

अच्छा नहीं लगा ...

दिल  को  सुजूदे-शौक़  का  चस्का  नहीं  लगा
दुनिया  को  ये:  ख़याल  भी  अच्छा  नहीं  लगा

क्या  रंज  कीजिए  कि  कोई  बेवफ़ा  हुआ
दचका  लगा  ज़रूर  प'  ज़्यादा  नहीं  लगा

कहता  रहा  क़रीब  का  रिश्ता  है  आपसे
लेकिन  हमें  वो:  शख़्स  शनासा  नहीं  लगा

उसके  सिपाहियों  ने  किया  क़त्ले-आम  जब
दिल  में  उसे  दरेग़  ज़रा-सा  नहीं  लगा

जम्हूर  की  दुआ  से  बादशाह  क्या  हुए
सौ  क़त्ल  भी  किए  तो  मुक़दमा  नहीं  लगा

है  एहतरामे-हुस्न  हमारे  मिजाज़  में
यूं  दिल  प'  कभी  दाग़े-तमन्ना  नहीं  लगा

कांधे  पे  लाद  लाए  हमें  अर्श  के  जवां
हम  ख़ुश  हैं  इस  सफ़र  में  किराया  नहीं  लगा !

                                                                                                (2016)

                                                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: सुजूदे-शौक़ : स्वेच्छा से/रुचि पूर्वक दंडवत करना ; चस्का : अभिवृत्ति ; रंज : खेद ; दचका : आघात ; शख़्स : व्यक्ति, शनासा: परिचित; क़त्ले-आम : व्यापक नरसंहार ; दरेग़ : दया ; जम्हूर : लोकतंत्र ; एहतरामे-हुस्न : सौंदर्य का सम्मान ; मिजाज़ : स्वभाव ; दाग़े-तमन्ना : उत्कट इच्छा का दोष ; अर्श के जवां : अर्श=आकाश, जवां : युवा, यहां आशय मृत्युदूत से ।

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