कहीं ईमान का सौदा किया क्या
बुतों के सामने सज्दा किया क्या
भुला कर आपने यादें वफ़ा की
हमारे साथ कुछ अच्छा किया क्या
तुम्हें सरकार ने तमग़ा दिया है
ख़ुदी के साथ समझौता किया क्या
सुनी है शाह की तकरीर सबने
कभी वादा कहीं सच्चा किया क्या
किया हमने बहुत कुछ ज़िंदगी में
वतन के नाम को रुस्वा किया क्या
किया है तंज़ हमने आप पर भी
ज़रूरत से कभी ज़्यादा किया क्या
मसाजिद में गए हम सर उठा कर
इबादत में ख़लल पैदा किया क्या ?!
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ईमान : निष्ठा; बुतों: मूर्त्तियों; सज्दा : भूमि पर सर झुका कर प्रणाम; तमग़ा : सम्मान-चिह्न; ख़ुदी : स्वाभिमान; तकरीर : भाषण ; रुस्वा : कलंकित, अपमानित; तंज़ : व्यंग्य ; मसाजिद : मस्जिद का बहुवचन; इबादत : पूजा-पाठ; ख़लल : व्यवधान ।
बुतों के सामने सज्दा किया क्या
भुला कर आपने यादें वफ़ा की
हमारे साथ कुछ अच्छा किया क्या
तुम्हें सरकार ने तमग़ा दिया है
ख़ुदी के साथ समझौता किया क्या
सुनी है शाह की तकरीर सबने
कभी वादा कहीं सच्चा किया क्या
किया हमने बहुत कुछ ज़िंदगी में
वतन के नाम को रुस्वा किया क्या
किया है तंज़ हमने आप पर भी
ज़रूरत से कभी ज़्यादा किया क्या
मसाजिद में गए हम सर उठा कर
इबादत में ख़लल पैदा किया क्या ?!
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ईमान : निष्ठा; बुतों: मूर्त्तियों; सज्दा : भूमि पर सर झुका कर प्रणाम; तमग़ा : सम्मान-चिह्न; ख़ुदी : स्वाभिमान; तकरीर : भाषण ; रुस्वा : कलंकित, अपमानित; तंज़ : व्यंग्य ; मसाजिद : मस्जिद का बहुवचन; इबादत : पूजा-पाठ; ख़लल : व्यवधान ।
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