दिल से हमें निजात दिला दीजिए हुज़ूर
हो कोई ख़रीदार, मिला दीजिए हुज़ूर
सदियां गईं सुरूरे-नज़्र में जनाब के
अब तो दवाए-होश पिला दीजिए हुज़ूर
ये हिज्र तोड़िए कि कह सकें नई ग़ज़ल
मरते हुए ख़याल जिला दीजिए हुज़ूर
दावा नहीं प' एक गुज़ारिश ज़ुरूर है
दिल से मिरी ख़ताएं भुला दीजिए हुज़ूर
दुनिया-ए-हुस्नो-इश्क़ ख़ुदा का निज़ाम है
नफ़रत की हर किताब जला दीजिए हुज़ूर
इंसान के अज़ीम फ़राइज़ तमाम हैं
मुस्कान किसी लब प' खिला दीजिए हुज़ूर
बदनाम न हो जाए इबादत का सिलसिला
मोमिन को एक बार सिला दीजिए हुज़ूर !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: निजात: मुक्ति, छुटकारा; सुरूरे-नज़्र: दृष्टि का मद; हिज्र: वियोग; ख़याल: कल्पनाएं; गुज़ारिश: निवेदन; ख़ताएं: अपराध;
दुनिया-ए-हुस्नो-इश्क़: सौन्दर्य और प्रेम का संसार; निज़ाम: व्यवस्था; नफ़रत: घृणा; अज़ीम: महान, बड़े; फ़राइज़: कर्त्तव्य;
लब: ओष्ठ; इबादत: पूजा; सिलसिला: क्रम, परंपरा; मोमिन: आस्थावान; सिला: प्रतिफल।
हो कोई ख़रीदार, मिला दीजिए हुज़ूर
सदियां गईं सुरूरे-नज़्र में जनाब के
अब तो दवाए-होश पिला दीजिए हुज़ूर
ये हिज्र तोड़िए कि कह सकें नई ग़ज़ल
मरते हुए ख़याल जिला दीजिए हुज़ूर
दावा नहीं प' एक गुज़ारिश ज़ुरूर है
दिल से मिरी ख़ताएं भुला दीजिए हुज़ूर
दुनिया-ए-हुस्नो-इश्क़ ख़ुदा का निज़ाम है
नफ़रत की हर किताब जला दीजिए हुज़ूर
इंसान के अज़ीम फ़राइज़ तमाम हैं
मुस्कान किसी लब प' खिला दीजिए हुज़ूर
बदनाम न हो जाए इबादत का सिलसिला
मोमिन को एक बार सिला दीजिए हुज़ूर !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: निजात: मुक्ति, छुटकारा; सुरूरे-नज़्र: दृष्टि का मद; हिज्र: वियोग; ख़याल: कल्पनाएं; गुज़ारिश: निवेदन; ख़ताएं: अपराध;
दुनिया-ए-हुस्नो-इश्क़: सौन्दर्य और प्रेम का संसार; निज़ाम: व्यवस्था; नफ़रत: घृणा; अज़ीम: महान, बड़े; फ़राइज़: कर्त्तव्य;
लब: ओष्ठ; इबादत: पूजा; सिलसिला: क्रम, परंपरा; मोमिन: आस्थावान; सिला: प्रतिफल।
बेहतरीन रचना सुरेश सर , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 18 . 9 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
Bahut badhiyaan paishkash hujur...... Badhaayi!!
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