नमी ही नहीं है तुम्हारी नज़र में
ये: दौलत लुटा आए किसके असर में
नहीं सर पे साया कहीं इस सफ़र में
बड़ी तेज़ है धूप दिल के शहर में
वही रंजो-ग़म हैं, वही आरज़ूएं
नया कुछ नहीं ज़िंदगी की ख़बर में
ये: मासूमियत देखिए क़ातिलों की
दवा दे रहे हैं मिला कर ज़हर में
ये: दावा-ए-उल्फ़त है कमज़ोर कितना
बराबर वज़न में, न कामिल बहर में
बहुत क़ीमती है ये: सरमाय:-ए-ईमां
न आए कभी दुश्मनों की नज़र में
हज़ारों गुनाहों पे बस एक माफ़ी
कहां तक गिरोगे किसी की नज़र में ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: साया: छाया; रंजो-ग़म: दु:ख-दर्द; आरज़ूएं: अभिलाषाएं; मासूमियत: अबोधता; दावा-ए-उल्फ़त: प्रेम का स्वत्व;
वज़न: मात्रा; कामिल बहर: परिपूर्ण छंद; सरमाय:-ए-ईमां: आस्था की पूंजी।
ये: दौलत लुटा आए किसके असर में
नहीं सर पे साया कहीं इस सफ़र में
बड़ी तेज़ है धूप दिल के शहर में
वही रंजो-ग़म हैं, वही आरज़ूएं
नया कुछ नहीं ज़िंदगी की ख़बर में
ये: मासूमियत देखिए क़ातिलों की
दवा दे रहे हैं मिला कर ज़हर में
ये: दावा-ए-उल्फ़त है कमज़ोर कितना
बराबर वज़न में, न कामिल बहर में
बहुत क़ीमती है ये: सरमाय:-ए-ईमां
न आए कभी दुश्मनों की नज़र में
हज़ारों गुनाहों पे बस एक माफ़ी
कहां तक गिरोगे किसी की नज़र में ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: साया: छाया; रंजो-ग़म: दु:ख-दर्द; आरज़ूएं: अभिलाषाएं; मासूमियत: अबोधता; दावा-ए-उल्फ़त: प्रेम का स्वत्व;
वज़न: मात्रा; कामिल बहर: परिपूर्ण छंद; सरमाय:-ए-ईमां: आस्था की पूंजी।
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