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रविवार, 10 नवंबर 2013

बग़ावत इसी में है !

हो     एहतरामे-उम्र     शराफ़त    इसी  में  है
ढहते  हुए    मज़ार  की    इज़्ज़त इसी  में  है 

हो      वक़्ते-ज़रूरत   तो     मुंह  न  दिखाइए
नादान    दोस्तों  की    नदामत    इसी  में  है

हो  निगहबां  तेरा   वही  अव्वल  वही  आख़िर
दुनिया  के    दांव-पेच  से    राहत  इसी  में  है

इज़्ज़त  का  रिज़्क़  हो  न  झुकानी  पड़े  नज़र
अल्लाह  की    इंसां  पे     इनायत   इसी  में  है

हथियार    हाथ  में    न  उठा  फ़तह  के  लिए
ऐ     आशिक़े-हुसैन     बग़ावत   इसी  में  है !

                                                            ( 2013 )

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ:   एहतरामे-उम्र: आयु का सम्मान; मज़ार: क़ब्र, यहां भावार्थ जर्जर शरीर; वक़्ते-ज़रूरत: आवश्यकता के समय; नदामत: विनम्रता, पश्चाताप; निगहबां: संरक्षक, ध्यान रखने वाला; अव्वल-आख़िर : आदि-अंत, ब्रह्म; रिज़्क़: आहार; इनायत: कृपा; फ़तह: विजय; नृशंस शासक यज़ीद के विरुद्ध अहिंसात्मक प्रतिरोध करने वाले, हज़रत इमाम हुसैन अ. स. के अनुयायी; बग़ावत: विद्रोह। 

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