हमने तेरे शहर को देखा है
ज़िंदगी के क़हर को देखा है
दिल सलामत युं ही नहीं रक्खा
आग देखी शरर को देखा है
हक़ हमें यूं है शे'र कहने का
सामईं पे असर को देखा है
ये: शहर दम-ब-दम हमारा है
रोज़ शामो-सहर को देखा है
जब भी अल्फ़ाज़ दिल से निकले हैं
हमने अपनी बहर को देखा है
बाज़ आओ मियां मुहब्बत से
तुमने अपनी उमर को देखा है ?
सिर्फ़ रब का वजूद पाया है
जब भी अपनी नज़र को देखा है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़हर: कोप; शरर: चिंगारी; सामईं: श्रोता गण; दम-ब-दम: प्रत्येक सांस से; शामो-सहर: संध्या और प्रात:काल;
अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.); बहर: छंद; बाज़ आना: त्याग देना, दूर रहना; रब: ईश्वर; वजूद: अस्तित्व।
ज़िंदगी के क़हर को देखा है
दिल सलामत युं ही नहीं रक्खा
आग देखी शरर को देखा है
हक़ हमें यूं है शे'र कहने का
सामईं पे असर को देखा है
ये: शहर दम-ब-दम हमारा है
रोज़ शामो-सहर को देखा है
जब भी अल्फ़ाज़ दिल से निकले हैं
हमने अपनी बहर को देखा है
बाज़ आओ मियां मुहब्बत से
तुमने अपनी उमर को देखा है ?
सिर्फ़ रब का वजूद पाया है
जब भी अपनी नज़र को देखा है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़हर: कोप; शरर: चिंगारी; सामईं: श्रोता गण; दम-ब-दम: प्रत्येक सांस से; शामो-सहर: संध्या और प्रात:काल;
अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.); बहर: छंद; बाज़ आना: त्याग देना, दूर रहना; रब: ईश्वर; वजूद: अस्तित्व।
advut
जवाब देंहटाएं