शेरो-सुख़न के शहर में आदाब क्या हुए
वो: नाज़ वो: अंदाज़ वो: अहबाब क्या हुए
ढूंढा करे हैं जिनको बहारें गली-गली
वो: रश्क़े-माहताब गुले-आब क्या हुए
हालात की ग़र्दिश से थक के चूर हो गए
नींदों के दरमियान तेरे ख़्वाब क्या हुए
हम जन्नतुल-फ़िरदौस में हैरान रह गए
क़व्वे हैं बेशुमार पे सुर्ख़ाब क्या हुए
निकले थे घर से हस्रते-तूफ़ां लिए हुए
कश्ती हमारी देख के गिरदाब क्या हुए ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शेरो-सुख़न: काव्य और साहित्य; आदाब: शिष्टाचार;नाज़: गर्व; अंदाज़: शैली; अहबाब: प्रिय-जन, मित्र;
चन्द्रमा के ईर्ष्या-पात्र; गुले-आब: गुलाब, शोभायमान पुष्प; हालात की ग़र्दिश: समय के फेर; दरमियान: मध्य;
मनमोहक स्वर्ग; सुर्ख़ाब: लाल पंखों वाले दुर्लभ पक्षी; हस्रते-तूफ़ां: तूफ़ान से मिलने की इच्छा; गिरदाब: भंवर।
वो: नाज़ वो: अंदाज़ वो: अहबाब क्या हुए
ढूंढा करे हैं जिनको बहारें गली-गली
वो: रश्क़े-माहताब गुले-आब क्या हुए
हालात की ग़र्दिश से थक के चूर हो गए
नींदों के दरमियान तेरे ख़्वाब क्या हुए
हम जन्नतुल-फ़िरदौस में हैरान रह गए
क़व्वे हैं बेशुमार पे सुर्ख़ाब क्या हुए
निकले थे घर से हस्रते-तूफ़ां लिए हुए
कश्ती हमारी देख के गिरदाब क्या हुए ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शेरो-सुख़न: काव्य और साहित्य; आदाब: शिष्टाचार;नाज़: गर्व; अंदाज़: शैली; अहबाब: प्रिय-जन, मित्र;
चन्द्रमा के ईर्ष्या-पात्र; गुले-आब: गुलाब, शोभायमान पुष्प; हालात की ग़र्दिश: समय के फेर; दरमियान: मध्य;
मनमोहक स्वर्ग; सुर्ख़ाब: लाल पंखों वाले दुर्लभ पक्षी; हस्रते-तूफ़ां: तूफ़ान से मिलने की इच्छा; गिरदाब: भंवर।
बहुत लाजवाब ... हर शेर पे वाह वाह निकलती है स्वप्निल जी ...
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