उठ चुकी मिट्टी हमारी अब तो पीछा छोड़ दे
ऐ ख़्याल-ए-यार ! इस दिल का दरीचा छोड़ दे
उन्स नाजायज़ अगर हो तो कभी आगे न बढ़
ये: न कर लेकिन के: जीने का सलीका छोड़ दे
है इबादत फ़र्ज़, ये: अहसां नहीं अल्लाह पे
मांग तू दिल से दुआ फ़िक्र-ए-नतीजा छोड़ दे
बेवफ़ा हो जाए कोई तो हसीं हैं बेशुमार
नासमझ है एक की ख़ातिर जो दुनिया छोड़ दे
गर ख़ुदा भी साथ ना दे रख ख़ुदी पे ऐतिमाद
कोशिशें कर तेज़ उम्मीद-ए-करिश्मा छोड़ दे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दरीचा: द्वार की चौखट; उन्स: लगाव; नाजायज़: अनुचित; सलीका: शिष्टाचार; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; अहसां: अनुग्रह; फ़िक्र-ए-नतीजा: परिणाम की चिंता; बेशुमार: अनगिनत; ख़ुदी: आत्म-बोध; ऐतिमाद: पक्का विश्वास; उम्मीद-ए-करिश्मा: चमत्कार की आशा।
ऐ ख़्याल-ए-यार ! इस दिल का दरीचा छोड़ दे
उन्स नाजायज़ अगर हो तो कभी आगे न बढ़
ये: न कर लेकिन के: जीने का सलीका छोड़ दे
है इबादत फ़र्ज़, ये: अहसां नहीं अल्लाह पे
मांग तू दिल से दुआ फ़िक्र-ए-नतीजा छोड़ दे
बेवफ़ा हो जाए कोई तो हसीं हैं बेशुमार
नासमझ है एक की ख़ातिर जो दुनिया छोड़ दे
गर ख़ुदा भी साथ ना दे रख ख़ुदी पे ऐतिमाद
कोशिशें कर तेज़ उम्मीद-ए-करिश्मा छोड़ दे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दरीचा: द्वार की चौखट; उन्स: लगाव; नाजायज़: अनुचित; सलीका: शिष्टाचार; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; अहसां: अनुग्रह; फ़िक्र-ए-नतीजा: परिणाम की चिंता; बेशुमार: अनगिनत; ख़ुदी: आत्म-बोध; ऐतिमाद: पक्का विश्वास; उम्मीद-ए-करिश्मा: चमत्कार की आशा।
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