तश्न: लब हूं साग़र ले आ
दो बूंद सही भर कर ले आ
मै ख़त्म हुई अफ़सोस न कर
ख़ाली ख़ुम को धो कर ले आ
हर रिंद वली है महफ़िल में
दिल के दुखड़े बाहर ले आ
बेचें न कभी हम दिल अपना
तू लाख ज़र-ओ-गौहर ले आ
ये: घर भी तुझीको वक़्फ़ किया
तूफ़ां ले आ सरसर ले आ
रख लेंगे तुझे माशूक़ अगर
अपना ईमां हम पर ले आ
ऐ चश्म-ए-क़सब मायूस न हो
दिल हाज़िर है ख़ंजर ले आ।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तश्न: लब: प्यासे होंठ; साग़र: मदिरा-पात्र; ख़ुम: मद्य-भांड; रिंद: मद्य-पान करने वाला; वली: संत, ज्ञानी; ज़र-ओ-गौहर: सोना और मोती; वक़्फ़: नाम लिखना, अभिन्यास; सरसर: आंधी; माशूक़: प्रिय; चश्म-ए-क़सब: वधिक की आंख; मायूस: निराश; ख़ंजर: छुरी।
दो बूंद सही भर कर ले आ
मै ख़त्म हुई अफ़सोस न कर
ख़ाली ख़ुम को धो कर ले आ
हर रिंद वली है महफ़िल में
दिल के दुखड़े बाहर ले आ
बेचें न कभी हम दिल अपना
तू लाख ज़र-ओ-गौहर ले आ
ये: घर भी तुझीको वक़्फ़ किया
तूफ़ां ले आ सरसर ले आ
रख लेंगे तुझे माशूक़ अगर
अपना ईमां हम पर ले आ
ऐ चश्म-ए-क़सब मायूस न हो
दिल हाज़िर है ख़ंजर ले आ।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तश्न: लब: प्यासे होंठ; साग़र: मदिरा-पात्र; ख़ुम: मद्य-भांड; रिंद: मद्य-पान करने वाला; वली: संत, ज्ञानी; ज़र-ओ-गौहर: सोना और मोती; वक़्फ़: नाम लिखना, अभिन्यास; सरसर: आंधी; माशूक़: प्रिय; चश्म-ए-क़सब: वधिक की आंख; मायूस: निराश; ख़ंजर: छुरी।
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