जो दिल में हमारे ठिकाना करोगे
ज़माने से कल क्या बहाना करोगे
तुम्हारी निगाहें ये: बतला रही हैं
किसी और को कल निशाना करोगे
निकल आओ बे-पर्द: तो हर्ज़ क्या है
शहर की फ़िज़ा को सुहाना करोगे
गवारा नहीं तुमको सूरत हमारी
तो क्यूं ख़्वाब में आना जाना करोगे
लुटाने को अब और क्या रह गया है
ये: दिल है, इसे भी रवाना करोगे ?
हमारी ग़ज़ल पे तरन्नुम तुम्हारा
ख़ुदा की क़सम, क्या दिवाना करोगे ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़िज़ा: वातावरण, मौसम; गवारा: स्वीकार्य; तरन्नुम: मधुर गायन।
ज़माने से कल क्या बहाना करोगे
तुम्हारी निगाहें ये: बतला रही हैं
किसी और को कल निशाना करोगे
निकल आओ बे-पर्द: तो हर्ज़ क्या है
शहर की फ़िज़ा को सुहाना करोगे
गवारा नहीं तुमको सूरत हमारी
तो क्यूं ख़्वाब में आना जाना करोगे
लुटाने को अब और क्या रह गया है
ये: दिल है, इसे भी रवाना करोगे ?
हमारी ग़ज़ल पे तरन्नुम तुम्हारा
ख़ुदा की क़सम, क्या दिवाना करोगे ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़िज़ा: वातावरण, मौसम; गवारा: स्वीकार्य; तरन्नुम: मधुर गायन।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
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