उनकी चाहत में बड़ी दूर क़दम आ पहुंचे
वक़्त आया ही न था मुल्क-ए-अदम आ पहुंचे
हम तो सामां-ए-ख़ुदकुशी सजाए बैठे थे
बन के उम्मीद तेरे अह् ल -ए-करम आ पहुंचे
जिन्हें आना था वो: न आए न पैग़ाम आया
आ गई याद के: फिर दर्द-ओ-अलम आ पहुंचे
उफ़! ये: उल्फ़त का चलन हाय ये: दीवानापन
फिर सर-ए-शाम सर-ए-आम सनम आ पहुंचे
हम भी क्या खूब हैं बस आपकी आवाज़ सुनी
हाथ में जाम लिया और हरम आ पहुंचे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुल्क-ए-अदम: परलोक, परमेश्वर का देश; सामां-ए-ख़ुदकुशी: आत्महत्या का सामान;
अहल -ए-करम:कृपापात्र; पैग़ाम:सन्देश, दर्द-ओ-अलम: पीड़ा और दुःख; उल्फ़त: आसक्ति;
सर-ए-शाम: संध्या होते ही; सर-ए-आम: खुल्लम-खुल्ला, सब के बीच; जाम: मद्य-पात्र; हरम: मस्जिद, देवालय ।
वक़्त आया ही न था मुल्क-ए-अदम आ पहुंचे
हम तो सामां-ए-ख़ुदकुशी सजाए बैठे थे
बन के उम्मीद तेरे अह् ल -ए-करम आ पहुंचे
जिन्हें आना था वो: न आए न पैग़ाम आया
आ गई याद के: फिर दर्द-ओ-अलम आ पहुंचे
उफ़! ये: उल्फ़त का चलन हाय ये: दीवानापन
फिर सर-ए-शाम सर-ए-आम सनम आ पहुंचे
हम भी क्या खूब हैं बस आपकी आवाज़ सुनी
हाथ में जाम लिया और हरम आ पहुंचे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुल्क-ए-अदम: परलोक, परमेश्वर का देश; सामां-ए-ख़ुदकुशी: आत्महत्या का सामान;
अहल -ए-करम:कृपापात्र; पैग़ाम:सन्देश, दर्द-ओ-अलम: पीड़ा और दुःख; उल्फ़त: आसक्ति;
सर-ए-शाम: संध्या होते ही; सर-ए-आम: खुल्लम-खुल्ला, सब के बीच; जाम: मद्य-पात्र; हरम: मस्जिद, देवालय ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें