क़ब्ल मिलने के तेरे आज़ार-ए-दिल कुछ कम न था
शक्ल-ए-अफ़सुर्दा पे चस्पां इस क़दर मातम न था
हर रिसाला , हर ख़बरनामा डराता है हमें
हम सियासतदां अगर होते तो कोई ग़म न था
ज़लज़ले के बाद आए थे सियासतदां बहुत
पर किसी के हाथ में उम्मीद का मरहम न था
इन्तेख़ाब-ए-आम में उम्मीदवारों का अमल
सैकड़ों वादे ज़ुबां पर , बात में कुछ दम न था
दौर-ए-दहक़ाँ भी किसी दिन आएगा इस देस में
अबके वो: बरसेंगे जिनके नाम का मौसम न था।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ब्ल: पहले; आज़ार: बीमारी, पीड़ा; शक्ल-ए-अफ़्सुर्दा: बुझा हुआ चेहरा;
रिसाला: पत्रिका; ख़बरनामा: समाचार-पत्र ; सियासतदां: राजनीतिज्ञ ;
ज़लज़ला: भूकंप; अमल: व्यवहार ; इन्तेख़ाब-ए-आम: आम चुनाव;
दौर-ए-दहक़ाँ: किसान-युग।
शक्ल-ए-अफ़सुर्दा पे चस्पां इस क़दर मातम न था
हर रिसाला , हर ख़बरनामा डराता है हमें
हम सियासतदां अगर होते तो कोई ग़म न था
ज़लज़ले के बाद आए थे सियासतदां बहुत
पर किसी के हाथ में उम्मीद का मरहम न था
इन्तेख़ाब-ए-आम में उम्मीदवारों का अमल
सैकड़ों वादे ज़ुबां पर , बात में कुछ दम न था
दौर-ए-दहक़ाँ भी किसी दिन आएगा इस देस में
अबके वो: बरसेंगे जिनके नाम का मौसम न था।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ब्ल: पहले; आज़ार: बीमारी, पीड़ा; शक्ल-ए-अफ़्सुर्दा: बुझा हुआ चेहरा;
रिसाला: पत्रिका; ख़बरनामा: समाचार-पत्र ; सियासतदां: राजनीतिज्ञ ;
ज़लज़ला: भूकंप; अमल: व्यवहार ; इन्तेख़ाब-ए-आम: आम चुनाव;
दौर-ए-दहक़ाँ: किसान-युग।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें