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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

तस्वीर-ए-ताज




दर्द    में    डूबा   हुआ - सा    ख़्वाब    है
ज़िंदगी   टूटा     हुआ-सा      ख़्वाब    है

अजनबी   तू   कौन    है ,   चेहरा    तेरा
उम्र- भर   देखा    हुआ -सा    ख़्वाब    है

हसरतों  की  भीड़   में   गुमग़श्त:   दिल
आँख  से   बिछड़ा   हुआ-सा   ख़्वाब   है

आपकी      ज़र्रानवाज़ी       है     हुज़ूर
दिल  अगर  बिखरा  हुआ-सा  ख़्वाब  है

आप   इसको   शौक़  से   कहिये  ग़ज़ल
ये: तो  बस , उलझा  हुआ-सा   ख़्वाब  है

चांदनी  में  तर-ब-तर   तस्वीर-ए-ताज
ख़्वाब  में   लिपटा  हुआ-सा   ख़्वाब  है।

                                                 (2004)

                                      -सुरेश  स्वप्निल 

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