नई-नई है मोहब्बत संभल-संभल के चलो
यहीं कहीं है क़यामत संभल-संभल के चलो
नज़र जो दिल के आइने में अक्स आता है
कहीं वो: हो न हक़ीक़त संभल-संभल के चलो
हंसी-हंसी में वो: जज़्ब हो गए रग़-ए-दिल में
सितम न ढाए ये: क़ुरबत संभल-संभल के चलो
तुलू हुआ है आफ़ताब शहर -ए-दिल में कहीं
के: बढ़ रही है हरारत संभल-संभल के चलो
ये: तेज़ - रफ़्त ज़माने, ये: हसरतों के हुजूम
क़दम-क़दम पे है ग़फ़लत संभल-संभल के चलो
पलक पे आये मुसाफ़िर को रोकना है गुनाह
ख़ुदा को हो न शिकायत संभल-संभल के चलो।
(2012)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक्स: प्रतिबिम्ब , हक़ीक़त : यथार्थ , जज़्ब : विलीन , रग़-ए-दिल : हृदय के तंतु , क़ुरबत : निकटता ,
तुलू : उदित , आफ़ताब: सूर्य, हरारत: ऊष्मा, ज्वर , तेज़ रफ़्त ज़माने : तीव्र गति-वान युग, हुजूम: झुण्ड
यहीं कहीं है क़यामत संभल-संभल के चलो
नज़र जो दिल के आइने में अक्स आता है
कहीं वो: हो न हक़ीक़त संभल-संभल के चलो
हंसी-हंसी में वो: जज़्ब हो गए रग़-ए-दिल में
सितम न ढाए ये: क़ुरबत संभल-संभल के चलो
तुलू हुआ है आफ़ताब शहर -ए-दिल में कहीं
के: बढ़ रही है हरारत संभल-संभल के चलो
ये: तेज़ - रफ़्त ज़माने, ये: हसरतों के हुजूम
क़दम-क़दम पे है ग़फ़लत संभल-संभल के चलो
पलक पे आये मुसाफ़िर को रोकना है गुनाह
ख़ुदा को हो न शिकायत संभल-संभल के चलो।
(2012)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक्स: प्रतिबिम्ब , हक़ीक़त : यथार्थ , जज़्ब : विलीन , रग़-ए-दिल : हृदय के तंतु , क़ुरबत : निकटता ,
तुलू : उदित , आफ़ताब: सूर्य, हरारत: ऊष्मा, ज्वर , तेज़ रफ़्त ज़माने : तीव्र गति-वान युग, हुजूम: झुण्ड
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें