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रविवार, 16 दिसंबर 2012

ख़ुदा से मिलो तो ....




ख़ुदा   से   मिलो   तो   वफ़ा  मांग  लेना
हमारी   तरफ़   से   दुआ    मांग    लेना

शब-ए-वस्ल  ख़ुद  एक तोहफ़ा है  यूँ तो
हक़-ए-इश्क़   का  मरतबा  मांग   लेना

वो: मुन्सिफ़  है  सबकी तरफ़  देखता है
सितम  तो  करो   प'  रज़ा   मांग  लेना

तग़ाफ़ुल  की जायज़ वजह  जो न हो तो
हमीं   से    कोई    मुद्दआ     मांग   लेना

सर-ए-बज़्म  ज़ाहिर न  हो   नब्ज़-ए-दिल
अकेले   में    हमसे    दवा    मांग    लेना

कठिन  है डगर  उसके पनघट की जोगी
तसव्वुफ़  का इक सिलसिला मांग लेना

कभी  हज  को आओ वहीं घर है अपना
इमाम - ए - सदर  से   पता  मांग लेना

                                            (2011)

                                -सुरेश स्वप्निल 

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