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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

तू हिमाला हुआ है



अपनी    बेताबियों   से    डरते     हैं
उनकी  ग़ुस्ताखियों   से    डरते   हैं

बुत- ए- ग़ुरूर    बन    गए    रहबर
और  फिर   बिजलियों  से  डरते  हैं

रश्क़ किस-किस से कीजिए साहब
अपनी   रुस्वाइयों    से    डरते   हैं
 
रिज्क़  तक   लुट  रहा  है   राहों  पे
ऐसी   आज़ादियों    से    डरते     हैं

दाल   छोड़ें     के:    बेच   दें    बच्चे
लोग    मंहगाइयों    से    डरते    हैं

कब - कहाँ - कौन  जला दे  बस्ती
शहर     दंगाइयों    से    डरते     हैं

तू  हिमाला  हुआ है  जिस दिन   से
तेरी     ऊँचाइयों    से    डरते     हैं।

                               (2009)

                        -सुरेश स्वप्निल


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